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पर्ण संकुचन (लीफ कर्ल)

कीट व रोग अभिज्ञान प्रणाली

पर्ण संकुचन (लीफ कर्ल) 

 

मूँग में पर्ण कुंचन रोग आर्थिक दृष्टि से महत्तवपूर्ण रोग है। इस रोग का प्रकोप दक्षिण भारत में अधिक होता है, परन्तु उत्तर भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में इस रोग का प्रकोप बढा है। यह रोग ‘पीनट बड नेक्रेसिस वाइरस‘ एवं टुबेको स्ट्रीक वाइरस के द्वारा होता है। जो थ्रिप्स  कीट द्वारा फैलता है। इस कीट का आकार बहुत छोटा होता है व यह पौधें के शीर्षस्थ भाग या पुष्प कलिकाओं या पुष्पों के अन्दर रहता है।

इस रोग के लक्षण पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था से लेकर अन्तिम अवस्था तक किसी भी समय प्रकट हो सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की नई पत्तियों के किनारे पर पार्श्व शिराओं व उसकी शाखाओं के चारो तरफ हल्का पीलापन हो जाता है। संक्रमित पत्तियों के सिरे नीचे की ओर कुंचित हो जाते हैं तथा यह भंगुर हो जाती हैं। ऐसी पत्तियों को यदि उंगली द्वारा थोड़ा सा झटका दिया जाय तो यह डंठल सहित नीचे गिर जाती हैं। 

संक्रमित पत्तियों की निचली सतह पर शिराओं में भूरे रंग का विवरण प्रकट हो जाता है जो कि डंठल तक में फैल जाता है। जिसके फलस्वरूप संक्रमित पौधों की वृद्धि रुक जाती है। ऐसे पौधे खेत में अन्य पौधों की तुलना में बौने से दिखते है और खेत में दूर से ही पहचाने जा सकते हैं। 

यदि पौधे प्रारम्भिक अवस्था में संक्रमित हो जाते हैं तो वह शिखर ऊतकक्षय के कारण मर सकते हैं। इसी कारण इस रोग से अधिक हानि होती है। पर्ण कुंचन के साथ-साथ पौधे पीत चितेरी रोग से भी संक्रमित हो सकते हैं।

यदि पौधे वयस्क अवस्था में संक्रमित होते हैं तो प्रायः ऊतकक्षय के लक्षण प्रकट नहीं होते, परन्तु शिराओं में पीलापन के लक्षण अधिक स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

रोग का प्रबंधन
रोग के नियंत्रण के प्रकोप को कम करने के लिए बीजों को कीटनाशी इमिडाक्रोपिरिड 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार तथा बुबाई के 15 दिन उपरान्त इसी कीटनाशी से छिड़काव (0. 5 मि.ली./ली पानी) करना चाहिए।