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पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)

कीट व रोग अभिज्ञान प्रणाली

पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)

पर्ण व्याकुंचन रोग उर्द का एक महत्वपूर्ण विषाणु जनित रोग है। यह बीज द्वारा फैलता है किन्तु कुछ क्षेत्रों में यह रोग सफेद मक्खा  या बीटल्स द्वारा भी फैलता है । इस विषाणु द्वारा संक्रमित पौधों में नाम मात्र की फलियाँ आती हैं। यह रोग उर्द में अधिक होता है। 

लक्षणः-

1.  इस रोग के लक्षण सामान्यतः फसल बोने के तीन-चार सप्ताह बाद दूसरी त्रिपत्ती सामान्य से बडी होने लगती है।

2.  बाद में इनमें झुर्रियां या मरोड़पन एवं पत्तियों की सामान्यता से अधिक वृद्धि होना इस रोग के विशिष्ट लक्षण है।

3.  ऐसी पत्तियाँ छूने पर सामान्यतः पत्ती से अधिक मोटी तथा खुरदरी होती हैं इस लक्षण द्वारा रोगी पौधें को खेत में दूर से ही पहचाना जा सकता है।

4.  जब रोगी पौधों में फूल लगते हैं तो पुष्पकलिका छोटी ही रहती है तथा इस के वाहृय दल सामान्य से मोटे तथा अधिक हरे हो जाते है। अधिकतर पुष्पक्रम गुच्छे की तरह दिखाई देता है।

5.  अधिकतर पुष्प कलियां परिपक्व होने से पहले ही गिर जाती हैं। कभी-कभी सभी पुष्प कलिकाओं के गिर जाने पुष्पक्रम एक डन्डी जैसा दिखता है।

6.  इस विषाणु के संक्रमण से पुष्प कलिकाओं में पराग कण बाध्य हो जाते है जिससे रोगी पौधों में फलियाँ कम लगती हैं। फसल पकने के समय तक भी पर्ण व्यांकुचन संक्रमित पौधे हरे ही रहते हैं। पर्ण व्याकुंचन के साथ-साथ पौधे का पीत चितेरी रोग से भी संक्रमित होने की संभावना रहती है।


चूँकि पर्ण व्यांकुचन रोग एक विषाणु के द्वारा होता  है। इस रोग का संचरण रोगी पौधें के बीजों द्वारा मुख्य रुप से होता है कुछ क्षेत्रों में इस रोग का संचरण कीटों जैसे माहू व सफेद मक्खी द्वारा होता है। 

रोग प्रबन्धन 

  • यह विषाणु रोगी पौधे के बीजों द्वारा संचारित होता है इसलिये रोगी पौधों को शुरु में ही उखाड़कर जला देना चाहिए। 
  • ऐसे क्षेत्र में जहां इस रोग का प्रकोप अधिक हो उर्द की पर्ण व्यांकुचन अवरोधी प्रजातियों को उगाना चाहिए । 
  • इस रोग का संचरण कीटों जैसे माहू व सफेद मक्खी द्वारा होता है इसलिये कीटों का नियंत्रण करके इस रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। खेत में रोग के लक्षण दिखते ही या बुवाई के 15 दिनो के पश्चात इमीडाक्लोपरीड 0.1 प्रतिशत (10 मिली. प्रति 10 लीटर पानी) या डायमेथोएट 0.3 प्रतिशत (30 मिली. प्रति 10 लीटर पानी) का फसल पर छिड़काव करें। इन कीटनाशियों का दूसरा छिडकाव बुवाई के 45 दिनों के पश्चात करने से इस रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है।